जीरो वेस्ट दिवसः व्यर्थ को अर्थ देने की दिशा में आगे बढ़ना ही होगा

  • अंतरराष्ट्रीय ‘जीरो वेस्ट’ दिवस: 30 मार्च
  • पृथ्वी को बचाना है तो उठाने होंगे चौतरफा कदम
  • उपचारित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग की नीतियों व परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन में जनता के बीच इसकी स्वीकार्यता महत्त्वपूर्ण कारक है।
    साइबा गुप्ता
    रिसर्च एनालिस्ट, काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) से जुड़े हैं
    कार्तिकेय चतुर्वेदी
    कंसलटेंट, काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) से जुड़े हैं
    दूसरे क्षेत्रों की तरह जल के क्षेत्र में भी अपशिष्ट की समस्या बढ़ रही है। भारत के लिए अपशिष्ट जल से जुड़ी आर्थिक और पर्यावरणीय संभावनाओं पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो गया है, क्योंकि यह सिंचाई जैसे कार्यों के लिए जल उपलब्धता बढ़ाने के साथ-साथ जल स्रोतों को प्रदूषित होने से बचाने में सहायक है। हाल ही में, भारत की अध्यक्षता में आयोजित अरबन-20 की चर्चा में इस पर जोर दिया गया कि शहरी जल सुरक्षा न केवल प्राथमिकता का क्षेत्र बने, बल्कि शहर ‘सर्कुलर इकोनॉमी’ की अगुवाई करें। ‘इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो वेस्ट’ के मौके पर यह देखना जरूरी है कि कैसे अपशिष्ट जल की रिसाइक्लिंग और उसे दोबारा इस्तेमाल करने का कदम संभावनाओं के नए दरवाजे खोल सकता है।

    जलवायु-प्रेरित जोखिम के साथ तेज शहरीकरण और बढ़ती आबादी जैसे तमाम कारणों से ताजे पानी के संसाधनों पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। इसने जल के वैकल्पिक स्रोतों को खोजने की जरूरत पैदा की है। हाल के दिनों में उपचारित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग ने ध्यान खींचा है। इसकी वजह है कि भारत में सिर्फ शहरी क्षेत्र प्रतिदिन 72,000 मिलियन लीटर से ज्यादा अपशिष्ट जल पैदा करते हैं। पर इसका 28% हिस्सा ही उपचारित हो पाता है। इसलिए, इसमें चुनौती और अवसर दोनों मौजूद हैं।
    काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) का आकलन है कि भारत में अभी निकलने वाले उपचारित अपशिष्ट जल से दिल्ली से नौ गुना बड़े क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती है। इतने आकार की जमीन पर फसलों से लगभग 966 अरब रुपए का राजस्व मिल सकता है। इसके आर्थिक लाभ के साथ सकारात्मक पर्यावरणीय पक्ष भी हैं। यह भूजल स्रोतों से सिंचाई का दबाव घटा सकता है, भूजल दोहन के लिए पंप की जरूरत कम कर सकता है। उपचारित अपशिष्ट जल में मौजूद पोषक तत्वों में कृत्रिम उर्वरकों पर निर्भरता घटाने की क्षमता है, जिससे उर्वरक उत्पादन में होने वाली ऊर्जा की खपत कम हो सकती है।
    सीईईडब्ल्यू के अनुसार, यदि 2021 में उपलब्ध उपचारित अपशिष्ट जल प्रयुक्त होता तो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 13 लाख टन की कमी आ सकती थी। इतनी क्षमता के बावजूद भारत में उपचारित अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग अभी भी मुख्यधारा में नहीं आया है। कुछ ही राज्यों ने वेस्ट-वॉटर ट्रीटमेंट और रियूज को बढ़ावा देने की नीतियां और दिशा-निर्देश बनाए हैं। जनवरी 2023 में, ट्रीटेड वेस्ट वॉटर के सुरक्षित पुन: उपयोग पर एक नेशनल फ्रेमवर्क (राष्ट्रीय रूपरेखा) जारी किया गया है। इसमें जल को सर्कुलर इकोनॉमी फ्रेमवर्क में लाने और राज्यस्तरीय नीतियों का मार्गदर्शन करने का व्यापक दृष्टिकोण शामिल है। हालांकि, इन नीतियों की सफलता अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग की परियोजनाओं की आर्थिक व्यवहार्यता से जुड़ी है।]

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