राज मंडाई मेला में शामिल हुए मंत्री कवासी लखमा ने खुद पर बरसाए कोड़े, पारंपरिक अंदाज में की पूजा-अर्चना

सुकमा।  छत्‍तीसगढ़ के सुकमा जिले में 12 साल बाद राज मंडाई मेला का आयोजन किया गया। चार दिवसीय मेले के अंतिम दिन मंत्री कवासी लखमा और बस्तर के नेता शंकर सोढ़ी भी पहुंचे। इस दौरान मंत्री लखमा ने खुद पर कोड़े बरसाए। साथ ही हाथों में मोर पंख लेकर कर पारंपरिक अंदाज में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की और प्रदेश में खुशहाली और शांति की प्रार्थना की। मंत्री लखमा का यह वीडियो इंटरनेट मीडिया में वायरल हो रहा है।

पालकी पर सवार होकर निकले रामराजा मजोज देव
इससे पहले 12 साल बाद आयोजित मेले के तीसरे दिन सुकमा के राजाराम मनोज देव पालकी पर सवार होकर मेले स्थल पर स्थापित देव स्थल की परिक्रमा की। उन्होंने जनता का अभिवादन किया और फूल बरसाए। वहीं इस जात्रा में मंत्री कवासी लखमा भी शामिल हुए और 72 परगना से आई देवी-लाट खप्पर ने परिक्रमा की। आज जात्रा के बाद देवी-देवताओं की विदाई होगी।
मंगलवार को 12 साल बाद चार दिवसीय मेले के आयोजन में परंपरा रीति-रिवाज देखने को मिले। सुबह से ही मेला स्थल पर स्थापित देवी- देवताओं की पूजा-अर्चना की गई। उसके बाद सभी मांझी व पुजारी के साथ पटेल राजवाड़ा पहुंच कर जमींदार परिवार को न्योता दिया। वहीं उसके बाद राजाराम मनोज देव पालकी पर सवार होकर मेले स्थल पहुंचे। पालकी को ग्रामीण अपने कंधे पर लेकर पहुंचे। जहां मंदिर स्थल पर मां रामरामिन की पूजा अर्चना व जोत जलाने के बाद पालकी में मेले स्थल पर तीन परिक्रमा दिलाई गई।
इस दौरान आमंत्रित देवी- देवता व लाट खप्पर भी तीन परिक्रमा लगाए। साथ ही जगह- जगह पूजा अर्चना व विधि- विधान से की गई। इस दौरान मनोज देव आम जनता पर फूल बरसाना शुरू कर दिए। इसके अलावा मांझी व पुजारी भी पालकी पर सवार होकर परिक्रमा की। परम्परागत जात्रा किया गया वही पूरी रश्म के साथ फिर से स्थापित किये गए। उससे पहले मेले स्थल पर ध्वज खम्ब स्थापित किया गया। इस दौरान राजपरिवार के करण देव, विक्रम देव मौजूद रहे। वही आज जात्रा के बाद देवी-देवताओं की विदाई की जाएगी।
मेले में दिखी संस्कृति व परंपराओं की झलक
12 साल बाद आयोजित मेले में जहां आधुनिकता के साथ-साथ संस्कृति व परंपराओं की झलक देखने को मिली। ओड़िशा से आए राजपरिवार के देव पोतराज, कमनराज व बालराज के पुजारियों ने गाल में नुकीली लोहे की छड़ घुसाकर ढोल व नृत्य किया। ये लोहे की छड़ करीब 1 मीटर से ज्यादा थी। वही सभी देवी के सामने पुजारी व भक्तजन नृत्य करते दिखे। इसके अलावा मेले स्थल में पुरानी परंपराओं को देखने को मिला।

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