केवी-डीएवी में चल रहा पुस्तकों के दान का पखवाड़ा, इधर निजी स्कूल बदल रहे पब्लिकेशन

कोरबा. एक ओर केवी और डीएवी अपने स्कूलों में पुस्तकों के दान का पखवाड़ा चला रहे हैं, तो दूसरी निजी सीबीएसई स्कूल हर साल पब्लिकेशन बदल रहे हैं। किस पब्लिकेशन से जितना ज्यादा कमीशन मिल रहा है उसे ही खरीदने अभिभावकों पर दबाव बनाया जा रहा है। जिस पब्लिकेशन से जितना अधिक कमीशन उसे ही चलवा रहे स्कूलों में
गौरतलब है कि पुरानी पंरपरा चली आ रही है स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे सत्र समाप्त होने के बाद अपनी पुस्तकों को आधे दाम पर या फिर नि:शुल्क उसी कक्षा में पढऩे वाले बच्चों को देते हैं। बहुत सारे ऐसे परिवार भी हैं जहां दो-तीन भाई बहन एक ही स्कूल में अलग-अलग कक्षाओं में अध्यनरत हैं। हर बार पब्लिकेशन बदलने की वजह से पुस्तकें किसी के काम नहीं आ रही है तो दूसरी ओर नई पुस्तकें खरीदने का दबाव भी बनाया जा रहा है। जिन पब्लिकेशन की पुस्तकों को लागू किया जाता है वे सिर्फ चुंनिदा दुकानों में ही उपलब्ध है। प्रिंट रेट से एक रूपए भी डिस्काउंट नहीं दिया जा रहा है।
पाठ्यपुस्तक निगम और एनईसीआरटी की पुस्तकों का उपयोग नहीं
निजी स्कूल मनमानी नहीं कर सके इसके लिए एनसीईआरटी और छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम द्वारा हर साल पुस्तकें सप्लाई की जाती है। सीजी बोर्ड से जुड़े अंग्रेजी माध्यम के स्कूल पाठ्यपुस्तक निगम से पुस्तकें नहीं लेते। वहीं सीबीएसई स्कूल भी एनसीईआरटी की पुस्तकों को चलन में नहीं लाते हैं।
अभिभावकों से राय लेने के बजाए थोपा जा रहा
अभिभावकों से स्कूल प्रबंधन राय भी नहीं ले रहे हैं। जबकि हर साल अगर ड्रेस या पुस्तकें बदलीं जाती हैं तो पहले पैरेंटेस मीटिंग आयोजित की जाती है। अगर पैरेंटस सहमति देते हैं तब जाकर पब्लिकेशन बदला जाता है, लेकिन किसी तरह की प्रक्रिया लागू नहीं की जा रही है।
अभिभावकों से स्कूल प्रबंधन राय भी नहीं ले रहे हैं। जबकि हर साल अगर ड्रेस या पुस्तकें बदलीं जाती हैं तो पहले पैरेंटेस मीटिंग आयोजित की जाती है। अगर पैरेंटस सहमति देते हैं तब जाकर पब्लिकेशन बदला जाता है, लेकिन किसी तरह की प्रक्रिया लागू नहीं की जा रही है।
केजी वन की आठ किताबें
नर्सरी और केजी वन की सात से आठ किताबों का सेट बेचा जा रहा है। एक सेट की कीमत दो से ढाई हजार तक वसूला जा रहा है। बच्चों की क्षमता से अधिक पाठ्यक्रम शामिल किया जा रहा है। ताकि अभिभावक ज्यादा से ज्यादा पुस्तकें खरीदे ताकि दुकान से मोटा कमीशन मिल सके।
० शिक्षा विभाग के अफसरों ने निजी स्कूलों के सामने टेके घुटने!
शिक्षा विभाग के अफसर निजी स्कूलों के किसी भी मनमानी पर कड़ा एक्शन नहीं लेते। ड्रेस, किताब, स्कूल फीस चाहे आरटीई की सीटों को कम करने का मामला हो। किसी भी मामले में न तो जांच होती है न ही कार्रवाई। अगर कोई अभिभावक शिकायत भी कर दे तब भी मामले को लटका दिया जाता है। विभाग तक स्कूल प्रबंधन जानकारी देना भी मुनासिब नहीं समझते हैं कि किस स्कूल द्वारा इस साल पब्लिकेशन बदला गया है।
० शिक्षा विभाग के अफसरों ने निजी स्कूलों के सामने टेके घुटने!
शिक्षा विभाग के अफसर निजी स्कूलों के किसी भी मनमानी पर कड़ा एक्शन नहीं लेते। ड्रेस, किताब, स्कूल फीस चाहे आरटीई की सीटों को कम करने का मामला हो। किसी भी मामले में न तो जांच होती है न ही कार्रवाई। अगर कोई अभिभावक शिकायत भी कर दे तब भी मामले को लटका दिया जाता है। विभाग तक स्कूल प्रबंधन जानकारी देना भी मुनासिब नहीं समझते हैं कि किस स्कूल द्वारा इस साल पब्लिकेशन बदला गया है।
अप्रैल और जून का फीस भी पूरा
निजी स्कूलों में नया सत्र प्रारंभ हो चुका है। अप्रैल और जून महीने का फीस लिया जा चुका है। अप्रैल में क्लासेस १० अप्रैल से प्रारंभ हुई है। हर बार गर्मी को देखते हुए २२ से २५ अप्रैल तक छुट्टिया लग जाती है। इसके बाद जून में भी १५ के बाद ही क्लासेस लगती है। दो महीने का फीस लेने के बाद क्लासेस महज १५ दिन ही लगती है