पति की चिता पर लेटकर पत्नी बोली- मुझे जला दो, उजड़ गए कई घर, बिखर गया सिंदूर, सर से उठा साया पिता का

दंतेवाड़ा। बस्तर में नक्सलवादियों और सुरक्षा बल के बीच जारी युद्ध में फिर एक बार कई परिवार उजड़ गए। नक्सली में डीआरजी जवानों की वाहन पर हुए नक्सली हमले में 10 जवान बलिदान ने माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा छीन लिया, महिलाओं की मांग के सिंदूर को बारूद से पोंछ दिया गया। कई दुधमुंहे मासूमों के सिर से पिता का साया छीन लिया गया। अब वे कभी भी अपने पिता को देख नहीं सकेंगे।

इस युद्ध की पर‍िणिति यह रही कि नक्‍सल हमले में बलिदानी दो जवानों को अपने ही गांव में अंतिम संस्कार के लिए दो गज जमीन भी नहीं मिली। `ये बलिदानी जवान बस्तर के ही आदिवासी परिवारों से थे। इनमें से आठ ऐसे थे जो कि नक्सल संगठन से मोह भंग होने के बाद आत्मसमर्पण कर सुरक्षा बल में भर्ती हुए थे।

हमले में कटेकल्याण क्षेत्र के मारजुम के बलिदानी जवान दुल्गो मंडावी व गादम गांव के जोगा कवासी का अंतिम संस्कार पुलिस लाइन कारली में जवानों व स्वजनों की उपस्थिति में किया गया। घाेर नक्सल प्रभावित इन गांव के ग्रामीणों को नक्सलियों ने फरमान जारी कर जवानों को गांव की सीमा में अंतिम संस्कार करने देने से मना किया था।

गादम के रहने वाले जोगा नक्सली संगठन छोड़कर आत्मसमर्पण करने के बाद सुरक्षा बल में भर्ती हुए थे। यह बात नक्सलियों को नागवार गुजर रही थी।

जोगा के आत्मसमर्पण के बाद 2020 में नक्सली समर्पित बेटे को वापस गांव में बुलाने की वजह उनके पिता की भी हत्या कर दी थी। जोगा के अंतिम दर्शन के लिए पुलिस जवान गांव से परिवार को लेकर यहां आए थे।

मारजुम के रहने वाले दुल्गो के अंतिम संस्कार के लिए शव गांव नही पहुंचा तो पत्नी कुमली मासूम बेटे अंकित के साथ पुलिस लाइन पहुंची थी।

कुमली ने बताया कि गांव में शव लाने से मना किया गया है पर उसने यह नहीं बताया कि किसने ऐसा करने से मना किया है। दुल्गो का भाई मंगलू भी डीआरजी में पदस्थ है। मंगलू ने बताया कि गांव के लोग अंतिम संस्कार के लिए मना कर रहे हैं। इसलिए भाई का अंतिम संस्कार दंतेवाड़ा में करवा रहे हैं।

हमले में उजड़े कई परिवार

इस हमले में बलिदानी हरिराम उर्फ मिड़कोम राजू सूरनार गांव के रहने वाले थे। उन पर माता-पिता, पत्नी व तीन मासूम बच्चों की जिम्मेदारी थी। इस हमले के बाद माता-पिता के बुढ़ापे की लाठी टूट चुकी है। पत्नी का सहारा छिन गया और तीनों बच्चे अनाथ हो चुके हैं।

पांच वर्ष पहले तक हरिराम पांच लाख रुपये का इनामी नक्सली हुआ करता था। नक्सल संगठन से मोहभंग होने पर आत्मसमर्पण कर सुरक्षा बल में शामिल होकर नक्सलियों के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहा था।

सुकमा जिले के जोगा सोढ़ी डीआरजी में प्रधान आरक्षक थे, वे भी इस हमले में बलिदान हो गए। जोगा सोढ़ी के दो जुड़वा बच्चे हैं, जो महज चार महीने के ही हैं। इनकी तुतलाती जुबान से जोगा पापा सुन पाते, इसके पहले ही राष्ट्र सुरक्षा में प्राणों की आहुति देनी पड़ गई।

गुरुवार को पुलिस लाइन कारली में उनकी पत्नी कोशी सोढ़ी बच्चों की दुहाई देते हुए जोगा से उठने को कह रही थी पर वे चिरनिद्रा में जा चुके थे। दोनों मासूमों को परिवार के सदस्य संभालते दिखे।

कुआकोंडा के दो जवान जगदीश कवासी व राजू करतम दोनों गोपनीय सैनिक थे और बड़ेगुडरा के कवासीपारा के रहने वाले थे। इस वारदात में मेटापाल के जयराम पोड़ियाम भी बलिदान हो गए। ये भी गोपनीय सैनिक थे। बीजापुर जिले के भैरमगढ़ के आरक्षक लखमू भी बलिदान हुए। प्रधान आरक्षक संतोष तामो भांसी थाना क्षेत्र के बड़े कमेली के थे। इस हमले में गीदम के वाहन चालक धनीराम की भी मौत हो गई। धनीराम के दो बच्चे हैं। इसमें 12 साल का लड़का व 15 साल की एक लड़की है। पत्नी मंगलदई व पिता लछिन्दर भी धनीराम पर आश्रित थे।

चिता पर लेटकर पति के पार्थिव शरीर से कहती रही, मुझे भी ले चलो

बड़ेगडरा के कवासीपारा में दो बलिदान जवान राजू करतम व जगदीश की चिताएं एक साथ जलाई गई। दोनों एक ही मोहल्ले के रहने वाले थे। राजू अमर रहे, जगदीश अमर रहे के नारे लगते रहे। राजू का कुछ वर्ष पहले ही विवाह हुआ था। अंतिम संस्कार के वक्त दारूण दृश्य देखने को मिला जब पत्नी रेशमा राजू की चिता पर लेट कर जोर-जोर से राेते हुए कहने लगी, मुझे भी अपने साथ ले चलो। यह दृश्य देख शमशान घाट पर उपस्थित सभीकी आंखें नम हो आई।

दरभा डिवीजन ने ली अरनपुर हमले की जिम्मेदारी

दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर में डीआरजी जवानों पर किए गए हमले की जिम्मेदारी दरभा डिवीजन ने ली है। अरनपुर हमले के बाद नक्सलियों की दरभा डिवीजन कमेटी ने प्रेस नोट जारी किया है। इसमें लिखा है कि पीएलजीए ने अरनपुर के पास जबरदस्त हमले किया है।

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