उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे का मामला बड़ी बेंच में जाएगा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि इस मामले को बड़ी बेंच में भेजा जाएगा। CJI ने कहा कि नबाम रेबिया मामले में उठाए गए सवाल को बड़ी बेंच में भेजना चाहिए, क्योंकि उसमें स्पष्टता की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, स्पीकर को राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को मान्यता देनी चाहिए।

ठाकरे बनाम शिंदे फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

– संविधान पीठ ने कहा कि शिंदे समूह को शिवसेना पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर फैसला अवैध था। आंतरिक पार्टी के विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

– कोर्ट ने कहा, ‘संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश और पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है।’

– सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था। जिससे संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं।

– कोर्ट ने उद्धव ठाकरे को राहत देने से साफ इनकार कर दिया। कहा कि उन्होंने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया। महाराष्ट्र के राज्यपाल का निर्णय भारत के संविधान के अनुसार नहीं था।

– सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं पर उचित समय के भीतर फैसला करना चाहिए था।’

पिछले साल अगस्त में हुई थी मामले की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने संविधान विषयक सवाल उठाए थे। इन्हीं सवालों के मद्देनजर आज फैसला आने वाला है। बता दें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने पिछले साल अगस्त में इस मामले की सुनवाई की थी। इस याचिका में संविधान के प्रावधानों पर सवाल उठाए गए थे। संविधान पीठ ने पूरे मामले में सभी पक्षों की दलील को सुन लिया है। आज इसमें अदालत फैसला देने वाली है।

16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग

शिवसेना के विघटन के बाद उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। इसमें ठाकरे और शिंदे ग्रुप ने कोर्ट में अपनी दलीलें रख दी हैं। उद्धव ठाकरे द्वारा पेश की गई याचिका में शिंदे गुट के 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है।

कपिल सिब्बल ने रखा ठाकरे का पक्ष

उद्धव ठाकरे गुट की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील पेश की है। उन्होंने अदालत को बताया कि तत्कालीन राज्यपाल बीएस कोश्यारी ने नियमों का उल्लंघन करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। उन्होंने कोर्ट से इस आदेश को निरस्त करने की मांग की है।

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