संस्कृति

Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान करें इस कथा का पाठ, तभी पूरा होगा व्रत

नई दिल्ली। 27 मार्च, 2025 यानी आज के दिन प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। यह भगवान शिव और देवी पार्वती के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, इस पावन तिथि पर शिव भक्त कठिन व्रत रखते हैं और सुख-शांति की कामना के लिए पूजा करते हैं। प्रदोष व्रत एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो त्रयोदशी तिथि पर पड़ता है। यह दिन शिव-शक्ति को समर्पित है, जो लोग इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें शिव जी का आशीर्वाद मिलता है और उनके जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।

वहीं, इस दिन जो लोग कठिन व्रत का पालन करते हैं, उन्हें प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat 2025) कथा का पाठ जरूर करना चाहिए, जो इस प्रकार है।

गुरु प्रदोष व्रत कथा ( Guru Pradosh Vrat Katha)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी रहती थी। उसके पति का निधन हो गया था, जिस वजह वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो छोटे बच्चे मिलें जो अकेले थे, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी। वह विचार करने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के बाद वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।

तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ''हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।'' यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ''हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।'' जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।

दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से वापस मिल गया। इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान दिया, जिससे ब्राह्मणी भी धनवान हो गई और शिव की बड़ी उपासक बन गई।

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