पितृ पक्ष 2025 : 7 से 21 सितम्बर तक पूर्वजों का पावन स्मरण, विशेष ज्योतिषीय योग में श्राद्ध का महत्व बढ़ा
2025-08-29 15:50:16
लखनऊ।
इस वर्ष पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) का शुभारंभ रविवार, 7 सितम्बर 2025 को पूर्णिमा श्राद्ध से होगा और समापन रविवार, 21 सितम्बर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या (महालया अमावस्या) पर होगा। कुल 15 दिनों तक चलने वाला यह पक्ष भारतीय सनातन परंपरा में पितरों की स्मृति और उनके तर्पण का सबसे बड़ा अवसर माना जाता है।
✨ धार्मिक और पौराणिक महत्व
ज्योतिषाचार्य पंडित पुनीत दुबे के अनुसार, शास्त्रों में पितृ ऋण को जीवन के तीन प्रमुख ऋणों (देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण) में सबसे अनिवार्य माना गया है। यदि पितरों का श्राद्ध नहीं किया जाए तो वे ‘अतृप्त’ होकर वंशजों के जीवन में कष्ट और विघ्न उत्पन्न करते हैं।
महाभारत के प्रसंग में भी इसका उल्लेख है—ज्योतिषाचार्य पंडित पुनीत दुबे बताते हैं कि जब दानवीर कर्ण स्वर्ग पहुँचे तो उन्हें सोना-रत्न तो मिले, लेकिन अन्न नहीं मिला, क्योंकि उन्होंने जीवनकाल में कभी पितरों के लिए अन्न का दान नहीं किया था। तब उन्हें 15 दिन के लिए धरती पर भेजा गया और उन्होंने श्राद्ध कर्म किए। तभी से पितृ पक्ष की परंपरा स्थापित हुई।
???? 2025 का विशेष ज्योतिषीय योग
ज्योतिषाचार्य पंडित पुनीत दुबे के अनुसार, इस वर्ष पितृ पक्ष के दौरान गुरु ग्रह (बृहस्पति) का पुनर्वसु नक्षत्र (द्वितीय चरण) में गोचर होगा।
यह संयोग लगभग 12 वर्षों में एक बार आता है।
यह योग पितृ दोष निवारण, कर्म शुद्धि और पितरों की आत्मा को मोक्ष दिलाने के लिए अत्यंत प्रभावी रहेगा।
इस अवधि में किए गए तर्पण और दान का फल कई गुना अधिक मिलता है।
साथ ही, पंडित पुनीत दुबे बताते हैं कि इस बार कन्या राशि पर सूर्य और तुला राशि पर केतु का विशेष दृष्टि योग रहेगा, जिसे पितृ शांति और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए अद्वितीय माना गया है।
???? पितृ दोष और तीर्थ महत्व
ज्योतिषाचार्य पंडित पुनीत दुबे के अनुसार, जन्म कुंडली में पितृ दोष होने पर जीवन में अनेक बाधाएँ आती हैं। इस दोष के निवारण के लिए पवित्र तीर्थों पर पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है।
गया (बिहार) : पिंडदान का सर्वोच्च स्थान।
प्रयागराज : गंगा-यमुना-सरस्वती संगम पर तर्पण।
हरिद्वार : गंगा तट पर पितरों की शांति के लिए तर्पण।
त्र्यंबकेश्वर (नासिक) : पितृ कर्म के लिए विशेष प्रसिद्ध।
गंगासागर (पश्चिम बंगाल) : गंगा सागर संगम पर श्राद्ध।
ब्रह्मकपाल तीर्थ, बद्रीनाथ (उत्तराखंड) :
बद्रीनाथ धाम में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित ब्रह्मकपाल घाट को पितरों के तर्पण का सबसे पवित्र स्थल माना गया है।
पंडित पुनीत दुबे बताते हैं कि यहाँ श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को विशेष शांति मिलती है और पितृ दोष नष्ट हो जाता है।
निष्कर्ष
ज्योतिषाचार्य पंडित पुनीत दुबे के अनुसार, पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और वंश परंपरा के सम्मान का पर्व है। इस बार गुरु ग्रह के विशेष योग और बद्रीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल तीर्थ जैसे पवित्र स्थलों पर श्राद्ध का महत्व और अधिक बढ़ गया है। श्रद्धा और विधिपूर्वक किए गए श्राद्ध-पुण्य से पितर प्रसन्न होकर वंशजों को स्वास्थ्य, सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
✍️ लेखक परिचय
ज्योतिषाचार्य पंडित पुनीत दुबे
संस्थापक – बाबा नीम करौरी ज्योतिष सेवा संस्थान (ट्रस्ट)
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